Atal bihari vajpayee biography in marathi poem

Atal Bihari Vajpayee Kavita : अटल बिहारी वाजपेयी यांच्या जयंतीनिमित्त शेअर करा या कविता, आयुष्याला मिळेल नवी दिशा

Atal Bihari Vajpayee Kavita

1) आने वाला कल न भुलाएँ

आओ फिर से दिया जलाएँ

आओ फिर से दिया जलाएँ

भरी दुपहरी में अँधियारा

सूरज परछाई से हारा

अंतरतम का नेह निचोड़ें

बुझी हुई बाती सुलगाएँ

आओ फिर से दिया जलाएँ

हम पड़ाव को समझे मंज़िल

लक्ष्य हुआ आँखों से ओझल

वर्त्तमान के मोहजाल में

आने वाला कल न भुलाएँ

आओ फिर से दिया जलाएँ

आहुति बाकी यज्ञ अधूरा

अपनों के विघ्नों ने घेरा

अंतिम जय का वज़्र बनाने

नव दधीचि हड्डियाँ गलाएँ

आओ फिर से दिया जलाएँ

2) गीत नया गाता हूँ

गीत नया गाता हूँ

टूटे हुए तारों से फूटे बासंती स्वर

पत्थर की छाती मे उग आया नव अंकुर

झरे सब पीले पात

कोयल की कुहुक रात

प्राची मे अरुणिम की रेख देख पता हूँ

गीत नया गाता हूँ

टूटे हुए सपनों की कौन सुने सिसकी

अन्तर की चीर व्यथा पलको पर ठिठकी

हार नहीं मानूँगा,

रार नई ठानूँगा,

काल के कपाल पे लिखता मिटाता हूँ

गीत नया गाता हूँ

3) गीत नहीं गाता हूँ

गीत नहीं गाता हूँ

बेनक़ाब चेहरे हैं,

दाग़ बड़े गहरे हैं

टूटता तिलिस्म आज सच से भय खाता हूँ

गीत नहीं गाता हूँ

लगी कुछ ऐसी नज़र

बिखरा शीशे सा शहर

अपनों के मेले में मीत नहीं पाता हूँ

गीत नहीं गाता हूँ

पीठ मे छुरी सा चांद

राहू गया रेखा फांद

मुक्ति के क्षणों में बार बार बंध जाता हूँ

गीत नहीं गाता हूँ

4) जीवन बीत चला

जीवन बीत चला

कल कल करते आज

हाथ से निकले सारे

भूत भविष्यत की चिंता में

वर्तमान की बाजी हारे

पहरा कोई काम न आया

रसघट रीत चला

जीवन बीत चला।

हानि लाभ के पलड़ों में

तुलता जीवन व्यापार हो गया

मोल लगा बिकने वाले का

बिना बिका बेकार हो गया

मुझे हाट में छोड़ अकेला

एक एक कर मीत चला

जीवन बीत चला।

5) मौत से ठन गई

मौत से ठन गई

ठन गई

मौत से ठन गई

जूझने का मेरा इरादा न था

मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था

रास्ता रोक कर वह खड़ी हो गई

यों लगा ज़िन्दगी से बड़ी हो गई

मौत की उमर क्या है? दो पल भी नहीं

ज़िन्दगी सिलसिला, आज कल की नहीं

मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूँ

लौटकर आऊँगा, कूच से क्यों डरूँ?

तू दबे पाँव, चोरी-छिपे से न आ

सामने वार कर फिर मुझे आज़मा

6) मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूँ

मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूँ,

लौटकर आऊँगा, कूच से क्यों डरूँ?

तू दबे पाँव, चोरी-छिपे से न आ,

सामने वार कर फिर मुझे आज़मा

मौत से बेख़बर, ज़िंदगी का सफ़र,

शाम हर सुरमई, रात बंसी का स्वर

बात ऐसी नहीं कि कोई ग़म ही नहीं,

दर्द अपने-पराए कुछ कम भी नहीं

प्यार इतना परायों से मुझको मिला,

न अपनों से बाक़ी है कोई गिला

हर चुनौती से दो हाथ मैंने किए,

आँधियों में जलाए हैं बुझते दिए

आज झकझोरता तेज़ तूफ़ान है,

नाव भँवरों की बाँहों में मेहमान है

पार पाने का क़ायम मगर हौसला,

देख तेवर तूफ़ाँ का, तेवरी तन गई,

मौत से ठन गई।

Vivek Bhor author

विवेक भोर, हे सध्या टाइम्स नाऊ डिजिटलमध्ये सीनिअर करस्पॉडन्ट या पदावर काम करत आहेत. मीडियात 14 वर्षांहून अधिक काम केल्याचा त्यांना अनुभव आहे. त्यांनी अधिक पiहा

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